RSS

Daily Archives: May 25, 2011

आगरा/१९७८-७९

आगरा आये थे राजनीतिक लक्ष्य के तहत,युनियन से दूर रहना चाहते थे और थुप गई गंभीर जिम्मेदारी.काम ओढ़ लिया तो करना था पूरी क्षमता से.अतः जब यूनियन के रजिस्ट्रेशन के लिए एक इन्स्पेक्टर जैन साहब उप-श्रमायुक्त कार्यालय,आगरा में पधारे तो मैंने उनके समक्ष महेश नानाजी का जिक्र कर दिया जो मेरठ से डिप्टी चीफ   इन्स्पेक्टर आफ फैक्टरीज होकर कानपुर गए थे. हालांकि उस वक्त वह रिटायर हो चुके थे.परन्तु जैन साहब ने कहा वह हमारे बॉस रहे हैं और तुम उनके रिश्तेदार हो और युनियन के सेक्रेटरी हो तो समझो इंस्पेक्शन हो गया और यूनियन रजिस्टर्ड हो गई इस आशय का लेटर डाक से भेज देंगे.सच में जैन साहब ने अपना वायदा पूरा किया और ०३.०४ .१९७८ की ता.में यूनियन रजिस्टर्ड होने का लेटर हमें जल्दी ही मिल गया. 
उधर लखनऊ से भी ०३ .०४ .१९७८ को ही मुझे कमला नगर ,आगरा में बी -५६० न. का मकान एलाट होने का लेटर तत्काल मिल गया.प्रथम किश्त जमा करने की आख़िरी ता. से पहले १० अप्रैल को रु.२९०/-सेन्ट्रल बैंक कमला नगर आगरा में जमा कर दिए.
इत्तिफाक से ०३ अप्रैल को ही अलीगढ़ में बहन को भी पुत्री रत्न की प्राप्ति हुयी.यह भान्जी शुरू से ही कमजोर और बीमार रही जिसकी फ़िक्र हमारे बउआ -बाबूजी को परेशान किये रही. यूनियन की कारवाई,मकान की प्रक्रिया और भांजी के शीघ्र स्वास्थ्य के लिए उपाए तलाशना  सभी काम महत्वपूर्ण थे.हमारे स्टाफ के साथियों ने पूरी मदद की. बहन के जेठ के मित्र बाल रोग विशेग्य थे और बिरादरी के ही थे उन्होंने तथा वहां के पंडित ने भान्जी के जीवन के लिए ख़तरा बताया था.मैं तब तक ज्योतिष में पारंगत नहीं था.लेकिन पंडित वाद का प्रबल विरोधी था.मैंने काफी पहले जब मकान एलाट होने की कोई सूचना भी नहीं थी और प्रताप नगर के मकान में किराए पर थे तभी एक स्वप्न देखा था कि हम अपने मकान में हैं और बाहर के खुले कच्चे हिस्से में यह भान्जी ईंटों के कंकडों के  ढेर पर खड़े होकर सड़क पर फेंकती जा रही है.अर्थात मैं पूर्ण आश्वस्त था कि भान्जी सकुशल रहेगी.जब बहुत बाद में ऐसा ही हुआ तो मैंने बउआ को प्रत्यक्ष दिखा कर उस स्वप्न का जिक्र याद दिलाया था.
बाबूजी अलीगढ़ जाकर बहन और भान्जी से मिल आये थे और भान्जी की फिजिकल पोजीशन देख कर निराश थे.मैंने उस समय के अपने ज्ञान के आधार पर खराब ग्रहों के समाधान हेतु कुछ जडी-बूटियाँ एकत्र कीं और उनके विशिष्ट रेशमी कपड़ों में ताबीज बना कर अलीगढ़ ले गया.बहन जी की सास साहिबा ने कहा कि वे लोग इस पर विशवास नहीं करते हैं फिर भी मामा के नाते लाये हो तो अपने हाथ से ही पहना जाओ और मैंने उनके निर्देश का पालन किया.खिन्नी की जड़ एक सहकर्मी ने अपने घर के पेड़ से खोद कर ला दी तो दुसरे ने केले की जड़ ला दी ,अनंत मूल की जड़ हमने रावत-पाड़ा से खरीद ली.सफ़ेद चन्दन का ताबीज उन लोगों ने मेरे परामर्श पर वहीं तैयार कर लिया और बाद में पहना दिया. 
चूंकि अलीगढ़ी पंडित ने आठ माह भारी बताये थे अतः बहन के श्वसुर साहब ने वातावरण बदलने के नाम पर बाबूजी से बहन और भान्जी को आगरा ले आने को कहा.इस दौरान १२ नवम्बर १९७८ को हम लोग अपने मकान में कमला नगर आ चुके थे अतः उस मकान में ही भान्जी आयी.(मकान लेने की औपचारिकताएं,अड़ंगे एवं समाधान अगली बार)
होली के बाद बहन के श्वसुर साहब और सास साहिबा अपनी पोती को देखने हमारे घर आये जब उन्हें पूर्ण तस्सल्ली हो गई कि वह पूर्ण स्वस्थ है और उनके पंडित ने झूठा बहका दिया था (या वह समाधान नहीं जानते होंगे या ठगना चाहते होंगे) तब लौट कर बहन और भान्जी को बुलवा लिया.
जब मेरा ज्योतिषीय प्रयोग भान्जी पर सफ़ल रहा तो मैंने तन्मयता से  इस ज्ञान को बढ़ाया किन्तु पोंगा-पंथ से हट कर शुद्ध वैज्ञानिक आधार पर.